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Showing posts from August, 2017

प्रकृति का प्रकोप

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ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम, देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो , अतिवृष्टि का शिकार भी हो रहे हे तो अनावृष्टि का शिकार भी बन रहे, कोई फ़सा हे नदी में तो कोई नालो में तो कोई बहेके पहुँच गया अज्ञात जगत में, फिर भी इसे समझ के संभल पाने की चाहे नही हे इन दिलों में, ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम, देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो | आहिस्ता- आहिस्ता बढ़ रहा हे प्रभाव इसका, कहि इसकी आकस्मिक भीषणता में गाल-मेल न हो जाओ तुम, जिसमे न कोई पुकार सुनने वाला आता हे ना कोई हमदर्द जताने, चाहे शोषित मुनाफ़ा का ढेर ही क्यों न लुटा दो तुम, ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम, देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो | छज्जे को अलंकृत करने में नीव को क्यों भुला बैठे हो, नीव के अल्पकालिक विषयांतर पर भी छज्जो को बिखरना पड़ जाता है, रख लो इन सब की समताओ का ध्यान तुम, अभी भी वक़्त है उस अनहोनी से हिफाजत करने का, ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम, देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो |     ...

कबीर दास

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढत बन माहि | ज्यो घट घट राम है, दुनिया देखे नाही |                                             @कबीर दास अर्थ: जिस प्रकार एक कस्तूरी की खुशबु को हिरण जंगल में ढूंढता फिरता है जबकि वह सुगंध उसे उसकी ही अपनी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से मिल रही होती है परन्तु वह जान नहीं पाता, उसी प्रकार इस संसार के कण कण में वह परमेश्वर विराजमान है परन्तु मनुष्य उसे ढूंढता फिरता है ।

समझ की कमी

ना तो शब्दो का अर्थ पता है, ना ही उनका उच्चारण, करने चला हूँ में वाद विवाद उनके महत्व पर, खूब दौड़ाया मछली को हवा में, त्वरित वेग से, फिर भी बचा ना सका जान उसकी में | थमा दी थी भुजाओ में, बिना कुछ बताए, में बेकार ही हवा में, गोता लगाता रहा, जब तक समझ पाता मछली का रिस्ता पानी से, तब तक देर हो चुकी होती हे धड़कनो की रवानी में, ना तो शब्दो का अर्थ पता है, ना ही उनका उच्चारण, करने चला हूँ में वाद विवाद उनके महत्व पर |                                                       @ कमल सिंह मीणा
पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,जे आचरहिं ते नर न घनेरे 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे ,जे आचरहिं ते नर न घनेरे - सूक्ति से तात्पर्य यह है कि दूसरों को उपदेश देने में बहुत लोग कुशल होते हैं परन्तु उस शिक्षा पर स्वयं आचरण करने बाले बहुत कम हीं होते हैं।

स्वतंत्रता दिवस

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वतन पर मिटने वालो करों प्रणाम मेरा स्वीकार, नाज हे इस धरती को बाँकुरे विरो पर, जिन्हे बलिदानी को अपना इतिहास बना डाला, कहे दो दुश्मनु से अभी भी जिन्दा हे हम, उसी सौरये और वीर गाथाओं के साथ, मिटा देंगे हस्ती तुम्हारी, अभी भी वकत को पहचान लो तुम, वतन पर मिटने वालो करों प्रणाम मेरा स्वीकार | पहचान लिया हे उन निर्बलताओं को, जिन्हे बोहे हे बीज हिन्द की प्रगति के विरुद्ध, अब अवधि हे बहुत कम बाधाओ के रुकने की, कड़कते हुए अम्बर की तरहे गरज उठा मेरा हिन्द, जय हो, जय हो, जय हो, मेरे हिन्दुस्तान, वतन पर मिटने वालो करों प्रणाम मेरा स्वीकार | स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  जय हिन्द                                                     @कमल सिंह मीणा