कबीर दास

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढत बन माहि |
ज्यो घट घट राम है, दुनिया देखे नाही |

                                            @कबीर दास

अर्थ: जिस प्रकार एक कस्तूरी की खुशबु को हिरण जंगल में ढूंढता फिरता है जबकि वह सुगंध उसे उसकी ही अपनी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से मिल रही होती है परन्तु वह जान नहीं पाता, उसी प्रकार इस संसार के कण कण में वह परमेश्वर विराजमान है परन्तु मनुष्य उसे ढूंढता फिरता है ।

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