प्रकृति का प्रकोप

ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम,
देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो ,
अतिवृष्टि का शिकार भी हो रहे हे तो अनावृष्टि का शिकार भी बन रहे,
कोई फ़सा हे नदी में तो कोई नालो में तो कोई बहेके पहुँच गया अज्ञात जगत में,
फिर भी इसे समझ के संभल पाने की चाहे नही हे इन दिलों में,
ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम,
देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो |


आहिस्ता- आहिस्ता बढ़ रहा हे प्रभाव इसका,
कहि इसकी आकस्मिक भीषणता में गाल-मेल न हो जाओ तुम,
जिसमे न कोई पुकार सुनने वाला आता हे ना कोई हमदर्द जताने,
चाहे शोषित मुनाफ़ा का ढेर ही क्यों न लुटा दो तुम,
ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम,
देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो |


छज्जे को अलंकृत करने में नीव को क्यों भुला बैठे हो,
नीव के अल्पकालिक विषयांतर पर भी छज्जो को बिखरना पड़ जाता है,
रख लो इन सब की समताओ का ध्यान तुम,
अभी भी वक़्त है उस अनहोनी से हिफाजत करने का,
ये प्रकृति का प्रकोप है इसकी अनदेखी करो मत तुम,
देख सकते हो तो देख लो जान सकते हो तो जान लो |
                                                       @कमल सिंह मीणा


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