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Showing posts from September, 2017

आ धरती गोरै धोरां री / कन्हैया लाल सेठिया

आ धरती गोरा धोरां री, आ धरती मीठा मोरां री ई धरती रो रूतबो ऊंचो, आ बात कवै कूंचो कूंचो, आं फोगां में निपज्या हीरा, आं बांठां में नाची मीरा, पत्रा री जामण आ सागण, आ ही प्रताप री मा भागण, दादू रैदास कथी बाणी, पीथळ रै पाण रयो पाणी, जौहर री जागी आग अठै, रळ मिलग्या राग विराग अठै, तलवार उगी रण खेतां में, इतिहास मंडयोड़ा रेतां मंें, बो सत रो सीरी आडावळ, बा पत री साख भरै चंबळ, चुड़ावत मांगी सैनाणी, सिर काट दे दियो क्षत्राणी, ई कूख जलमियो भामासा, राणा री पूरी मन आसा, बो जोधो दुरगादास जबर, भिड़ लीन्ही दिल्ली स्यूं टक्कर, जुग जुग में आगीवाण हुया, घर गळी गांव घमसाण हुया, पग पग पर जागी जोत अठै, मरणै स्यूं मधरी मौत अठै, रूं रूं में छतरयां देवळ है, आ अमर जुझारां री थळ है, हर एक खेजड़ै खेड़ां में रोहीड़ा खींप कंकेड़ां में, मारू री गूंजी राग अठै, बलिदान हुया बेथाग अठै, आ मायड़ संता शूरां री, आ भौम बांकुरा वीरां री, आ माटी मोठ मतीरां री आ धूणी ध्यानी धीरां री, आ साथण काचर बोरां री, आ मरवण लूआं...

हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो / बिन्दु जी

हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो। जगतपति जग व्याप्त जगदाधार जग विश्राम हो। दिवस-निशि जिसकी प्रबल भय रोग कि हो वंदना। उस दुखी जन के लिए तुम वास्तविक सुख धाम हो। क्लेश इस कलिकाल का उसको कभी व्यापे नहीं। ह्रदय में जिनके तुम्हारा ध्यान आठो याम हो॥ एक ही अभिलाष है पूरी इसे कर दो प्रभो। मेरी रसना पे सदा रस 'बिन्दु' मय तव नाम हो॥ -- बिन्दु जी

हिंडोले झूलत दोऊ सरकार / बिन्दु जी

हिंडोले झूलत दोऊ सरकार श्री मिथिलेश लली संग राजत श्री अवधेश कुमार। दामिनि गरजि गरजि घन बरसत रिमझिम पड़त फुहार॥  झुकि झुकि लाल लली मुख निरखत मानत मोद अपार। मानहुँ अरुण ‘बिन्दु’ पंकज पर भ्रमत भ्रमर बहुबार॥ -- बिन्दु जी

ग़ैर मुमकिन है कि दुनिया अपनी मस्ती छोड़ दे / बिन्दु जी

ग़ैर मुमकिन है कि दुनिया अपनी मस्ती छोड़ दे, इसलिए तू भी यह, बेकार बस्ती छोड़ दे॥ तू न बन्दा बन ख़ुदा का, औ’ ख़ुदा तू भी न बन, हस्ती-ए-उल्फ़त में मिल जा तू अपनी हस्ती छोड़ दे॥ ख़ुद तरसाया है तेरी ख्वाहिशो को कुछ तरसती छोड़ दे, तुझको भी मन्सूर सा, मशहूर होना है अगर, जानो दिल देने से अपनी, तय हस्ती छोड़ दे। ‘बिन्दु’ आँखों के तेरे, दिखलाएँगे फस्लों भार, भरके आहों की घटाओं को, बरसती छोड़ दे॥ --  बिन्दु जी

अलामा इक़बाल की प्रसिद्ध शायरी

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल  लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे  मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिए कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है सितारों से आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है गुज़र गया वो वक़्त जब तेरे तलबगार थे हम. अब खुद भी बन जाओ तो सजदा न करेंगे..! कितने आंसू बहूँगा उस बेवफा के लिए जिसको खुदा ने मेरे नसीब मैं लिखा ही नहीं खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा* क्या है दिल की बस्ती अजीब बस्ती है, लूटने वाले को तरसती है।