हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो / बिन्दु जी


हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो।
जगतपति जग व्याप्त जगदाधार जग विश्राम हो।
दिवस-निशि जिसकी प्रबल भय रोग कि हो वंदना।
उस दुखी जन के लिए तुम वास्तविक सुख धाम हो।
क्लेश इस कलिकाल का उसको कभी व्यापे नहीं।
ह्रदय में जिनके तुम्हारा ध्यान आठो याम हो॥
एक ही अभिलाष है पूरी इसे कर दो प्रभो।
मेरी रसना पे सदा रस 'बिन्दु' मय तव नाम हो॥
--बिन्दु जी

Comments

Popular posts from this blog

Tu khud ki khoj me nikal...तू खुद की खोज में निकल - लेखक तनवीर ग़ाज़ी

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर / हरिवंशराय बच्चन

आ धरती गोरै धोरां री / कन्हैया लाल सेठिया