में एक वृद्ध पेड़ | Kamal Singh
में एक वृद्ध पेड़...... हम भी नादान थे शिशु अवस्था में, ना कोई अस्तित्व था, तो ना कोई पहचान | फिर भी पवन के हर झोंके पर, अपनी फुनगियों के झुलु से स्वम को बयां करते थे | सफर समय के साथ धीरे-धीरे गुजरता गया, मौसम के बदलाव ने भी जिंदगी को, अनुकूलता में ढालना सिखा दिया | आते रहते थे आंधी तूफान, खड़ा रहने की ख्वाइश में, जड़ों की गहराई व तने की पुष्टता, पर ध्यान का अग्रसर होना स्वाभाविक ही था | शाखाएं भी अब बहुत बढ़ चुकी थी, मानो सरसराहट की गूंज से, पत्ते भी अपनी ख़ुशी के गीत गा रहे थे | नन्हे मुन्हें बालक फुनगियों पर झूले झूने लगे, खग विहग की चहचहाट के, मधुर मधुर स्वर भी मन को बहुत भाते, मानो सब वासुदेव कुटुंबकम, का अहसास दिला रहे हो | मित्रता का भाव था सब में, खग विहग हो या मवेशी, सबकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था कुछ पथिको का मध्यान भोजन भी होता था, तो कुछ को थकान मिटाने के लिए, विश्रांती की छाव भी भाव जाती थी | चलता रहा कुछ ऐसा ही सफर, पता भी ना चला कब, वर्ष महीनो में निकल गए | समय के बहाव में, ये भी कब स्थिर रहने वाला था, और जल्दी ही सब कुछ बदलने वाला था | वक्...