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Showing posts from November, 2017

गीत नही गाता हूँ / गीत नया गाता हूँ By: Atal Ji

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं, टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ । गीत नही गाता हूँ । लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर, अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ। गीत नहीं गाता हूँ। पीठ मे छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फाँद, मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ। गीत नहीं गाता हूँ। टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर झड़े सब पीले पात कोयल की कुहुक रात प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ गीत नया गाता हूँ टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ गीत नया गाता हूँ | By: Atal Bihari Vajpayee Ji

पद्मिनी-गोरा-बादल

पद्मिनी-गोरा-बादल श्री पंडित नरेंद्र मिश्र द्वारा बहुत ही अदभूद चित्रण किया है- दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी | जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी || रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया मगर वीरता का अपमानित ज्वार नही मिट प...